उलझे जो रक़ीब से वो कल पी के शराब
कहते हैं हुआ चाक कशाकश में नक़ाब
सब झूट नक़ाब रुख़ पे क्यूँ कर ठहरी
साबित रखता है कब कताँ को महताब
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Habib Jalib
Wasi Shah
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
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वो जब आप से अपना पर्दा करें
चले हो दश्त को 'नाज़िम' अगर मिले मजनूँ
इस तवक़्क़ो' पे कि देखूँ कभी आते जाते
ये बंदा-ए-ख़ाकसार या'नी 'नाज़िम'
कुफ़्र-ओ-ईमाँ से है क्या बहस इक तमन्ना चाहिए
ईद के दिन जाइए क्यूँ ईद-गाह
हक़ ये है कि का'बे की बिना भी न पड़ी थी
भला क्या ता'ना दूँ ज़ुहहाद को ज़ुहद-ए-रियाई का
नागाह मुझे दिखा के ताब-ए-रुख़्सार
बाक़ी न रही हाथ में जब क़ुव्वत-ओ-ज़ोर
सूरत वो पहली कि हो मगर माह-ए-तमाम
बे दिए ले उड़ा कबूतर ख़त