कुफ़्र-ओ-ईमाँ से है क्या बहस इक तमन्ना चाहिए
हाथ में तस्बीह हो या दोश पर ज़ुन्नार हो
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अफ़्साना-ए-मजनूँ से नहीं कम मिरा क़िस्सा
कहते हैं छुप के रात को पीता है रोज़ मय
जाँ-फ़िशानी का वाँ हिसाब अबस
क्या बात है कारसाज़ तेरी मैं कौन
आशिक़ जो हुआ है तू किसी पर नागाह
क़ाज़ी के मुँह पे मारी है बोतल शराब की
ईद है हम ने भी जाना कि न होती गर ईद
वही गुल है गुलिस्ताँ में वही है शम्अ' महफ़िल में
है आईना-ख़ाने में तिरा ज़ौक़-फ़ज़ा रक़्स
कहाँ है तू कहाँ है और मैं हूँ
है ईद मय-कदे को चलो देखता है कौन
उस बुत का कूचा मस्जिद-ए-जामे नहीं है शैख़