लौ Poetry (page 5)

वो दिल भी जलाते हैं रख देते हैं मरहम भी

शमीम करहानी

शोला शोला थी हवा शीशा-ए-शब से पूछो

शमीम हनफ़ी

नीले पीले सियाह सुर्ख़ सफ़ेद सब थे शामिल इसी तमाशे में

शमीम हनफ़ी

कौन सा शो'ला लपकता है ये महमिल के क़रीब

शमीम फ़तेहपुरी

दुनिया की रिवायात से बेगाना नहीं हूँ

शकील बदायुनी

रात के पिछले पहर

शकेब जलाली

आग के दरमियान से निकला

शकेब जलाली

मालूम है किसू को कि वो आज शोला-ख़ू

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

न तन में उस्तुख़्वान ने रग रही है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जब आप से ही गुज़र गए हम

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

इस दुख में हाए यार यगाने किधर गए

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

ज़मीं अपने लहू से आश्ना होने ही वाली है

शहज़ाद अहमद

ये सोच कर कि तेरी जबीं पर न बल पड़े

शहज़ाद अहमद

मैं कि ख़ुश होता था दरिया की रवानी देख कर

शहज़ाद अहमद

दिल-ए-फ़सुर्दा उसे क्यूँ गले लगा न लिया

शहज़ाद अहमद

दिल बहुत मसरूफ़ था कल आज बे-कारों में है

शहज़ाद अहमद

फिर सफ़र बे-सम्त बे-मंज़िल हुआ

शहरयार

हर दर-ओ-दीवार पे लर्ज़ां कोई पैकर लगे

शाहिद माहुली

लुत्फ़ से तेरे सिवा दर्द महक जाता है

शाहिद इश्क़ी

ए'तिराफ़

शाहिद अख़्तर

सजाएँ महफ़िल-ए-याराँ न शग़्ल-ए-जाम करें

शाहिद अख़्तर

हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार का मौसम निकल गया

शहाब जाफ़री

हयात में भी अजल का समाँ दिखाई दे

शहाब जाफ़री

सदा है इस आह-ओ-चश्म-ए-तर से फ़लक पे बिजली ज़मीं पे बाराँ

शाह नसीर

दिल इश्क़-ए-ख़ुश-क़दाँ में जो ख़्वाहान-ए-नाला था

शाह नसीर

दिखा दो गर माँग अपनी शब को तो हश्र बरपा हो कहकशाँ पर

शाह नसीर

देख तू यार-ए-बादा-कश! मैं ने भी काम क्या किया

शाह नसीर

चश्म में कब अश्क भर लाते हैं हम

शाह नसीर

मौसम-ए-गुल आ गया फिर दश्त-पैमाई रहे

शाग़िल क़ादरी

सरों पे साया ग़ुबार-ए-सफ़र के जैसा है

शफ़क़ सुपुरी

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