लौ Poetry (page 4)

सीना-साफ़ी की है जिसे ऐनक

सिराज औरंगाबादी

सनम ख़ुश तबईयाँ सीखे हो तुम किन किन ज़रीफ़ों सीं

सिराज औरंगाबादी

जिस कूँ तुझ ग़म सीं दिल-शिगाफ़ी है

सिराज औरंगाबादी

हमारी आँखों की पुतलियों में तिरा मुबारक मक़ाम हैगा

सिराज औरंगाबादी

चराग़-ए-मह सीं रौशन-तर है हुस्न-ए-बे-मिसाल उस का

सिराज औरंगाबादी

मैं वो टूटा हुआ तारा जिसे महफ़िल न रास आई

सिद्दीक़ मुजीबी

अजब पागल है दिल कार-ए-जहाँ बानी में रहता है

सिद्दीक़ मुजीबी

गीत ख़ुशी का गाओ

सिद्दीक़ कलीम

हर चंद कि प्यारा था मैं सूरज की नज़र का

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

मिरे दिल की अब ऐ अश्क-ए-नदामत शुस्त-ओ-शू कर दे

श्याम सुंदर लाल बर्क़

रास्ते पुर-पेच राही रुस्तगार

शोरिश काश्मीरी

वो और होंगे जो वहम-ओ-गुमाँ के साथ चले

शोला हस्पानवी

उस ने फिर और क्या कहा होगा

शोला हस्पानवी

हर लम्हा था सौ साल का टलता भी तो कैसे

शोहरत बुख़ारी

आओ कि अभी छाँव सितारों की घनी है

शोहरत बुख़ारी

'मीर' का सोज़-ए-बयाँ हो तो ग़ज़ल होती है

शिव दयाल सहाब

शो'ला-ख़ेज़-ओ-शो'ला-वर अब हर रह-ए-तदबीर है

शिव चरन दास गोयल ज़ब्त

हिजाब-ए-राज़ फ़ैज़-ए-मुर्शिद-ए-कामिल से उठता है

शेर सिंह नाज़ देहलवी

कोई कमर को तिरी कुछ जो हो कमर तो कहे

ज़ौक़

दिखला न ख़ाल-ए-नाफ़ तू ऐ गुल-बदन मुझे

ज़ौक़

दिल में शोला था सो आँखों में नमी बनता गया

शहपर रसूल

मह्व हूँ मैं जो उस सितमगर का

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

है बद बला किसी को ग़म-ए-जावेदाँ न हो

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

मिसाल-ए-शोला-ओ-शबनम रहा है आँखों में

शाज़ तमकनत

जी में आता है कि 'शौकत' किसी चिंगारी को

शौकत परदेसी

बर्क़ की शो'ला-मिज़ाजी है मुसल्लम लेकिन

शौकत परदेसी

ख़्वाब ऐसा भी नज़र आया है अक्सर मुझ को

शारिक़ जमाल

शोर-ए-तूफ़ान-ए-हवा है बे-अमाँ सुनते रहो

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

आब ओ गिया से बे-नियाज़ सर्द जबीन-ए-कोह पर

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

जब भी तुम्हारी याद की आहट मुझे मिली

शम्स फ़रीदी

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