मैं वो टूटा हुआ तारा जिसे महफ़िल न रास आई
मैं वो शोला जो शब भर आँख के पानी में रहता है
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न कोई नक़्श न पैकर सराब चारों तरफ़
भूली-बिसरी बात है लेकिन अब तक भूल न पाए हम
ख़ुद पे क्या बीत गई इतने दिनों में तुझ बिन
मैं भी आवारा हूँ तेरे सात आवारा हवा
प्यासा जो मेरे ख़ूँ का हुआ था सो ख़्वाब था
एक बे-मंज़र उदासी चार-सू आँखों में है
आरज़ू जीने की थी इम्कान जीने का न था
नाख़ुदा हो कि ख़ुदा देखते रह जाते हैं
मौज-ए-ख़याल-ए-यार ग़म-ए-आसार आई है
अजब पागल है दिल कार-ए-जहाँ बानी में रहता है
आग देखूँ कभी जलता हुआ बिस्तर देखूँ