मैं ने हँसने की अज़िय्यत झेल ली रोया नहीं
ये सलीक़ा भी कोई आसान जीने का न था
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न पूछ मर्ग-ए-शनासाई का सबब क्या है
उस ने सोचा भी नहीं था कभी ऐसा होगा
प्यासा जो मेरे ख़ूँ का हुआ था सो ख़्वाब था
उठे हैं हाथ तो अपने करम की लाज बचा
मौज-ए-ख़याल-ए-यार ग़म-ए-आसार आई है
नैरंग-ए-जहाँ रंग-ए-तमाशा है तो क्या है
हमारे नाम लिखी जा चुकी थी रुस्वाई
मैं भी आवारा हूँ तेरे सात आवारा हवा
बे-कराँ समझा था ख़ुद को कैसे नादानों में था
मिरे चेहरे से ग़म आँखों से हैरानी न जाएगी
होंटों पे सुख़न आँखों में नम भी नहीं अब के
दिल ही गिर्दाब-ए-तमन्ना है यहीं डूबते हैं