सितम Poetry (page 17)

वफ़ा में बराबर जिसे तोल लेंगे

इमदाद अली बहर

सर्व में रंग है कुछ कुछ तिरी ज़ेबाई का

इमदाद अली बहर

ख़ुर्शीद-रुख़ों का सामना है

इमदाद अली बहर

हमीं नाशाद नज़र आते हैं दिल-शाद हैं सब

इमदाद अली बहर

अब मरना है अपने ख़ुशी है जीने से बे-ज़ारी है

इमदाद अली बहर

आज़ुर्दा हो गया वो ख़रीदार बे-सबब

इमदाद अली बहर

वो बेज़ार मुझ से हुआ ज़ार मैं हूँ

इमाम बख़्श नासिख़

सनम कूचा तिरा है और मैं हूँ

इमाम बख़्श नासिख़

नशात-ए-नौ की तलब है न ताज़ा ग़म का जिगर

इकराम आज़म

इंकार ही कर दीजिए इक़रार नहीं तो

इफ़्तिख़ार राग़िब

अंदाज़-ए-सितम उन का निहायत ही अलग है

इफ़्तिख़ार राग़िब

किसी के हक़ में सही फ़ैसला हुआ तो है

इफ़्तिख़ार नसीम

हम अहल-ए-जब्र के नाम-ओ-नसब से वाक़िफ़ हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मिरी मोहब्बत की बे-ख़ुदी को तलाश-ए-हक़्क़-ए-जलाल देना

इफ़्फ़त अब्बास

न कू-ए-यार में ठहरा न अंजुमन में रहा

इब्राहीम अश्क

अना ने टूट के कुछ फ़ैसला किया ही नहीं

इब्राहीम अश्क

यगानगी में भी दुख ग़ैरियत के सहता हूँ

हुरमतुल इकराम

क्या क्या न ज़िंदगी के फ़साने रक़म हुए

हिमायत अली शाएर

रुकने के लिए दस्त-ए-सितम-गर भी नहीं था

हिलाल फ़रीद

वो ये कहते हैं ज़माने की तमन्ना मैं हूँ

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

मुझे फ़रेब-ए-वफ़ा दे के दम में लाना था

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

तड़प के हाल सुनाया तो आँख भर आई

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

दिल शादमाँ हो ख़ुल्द की भी आरज़ू न हो

हीरा लाल फ़लक देहलवी

ख़ाल-ए-रुख़्सार को दाग़-ए-मह-ए-कामिल बाँधा

हयात मदरासी

ज़ुल्फ़ अंधेर करने वाली है

हातिम अली मेहर

न दिया बोसा-ए-लब खा के क़सम भूल गए

हातिम अली मेहर

बदन-ए-यार की बू-बास उड़ा लाए हवा

हातिम अली मेहर

उस ना-ख़ुदा के ज़ुल्म ओ सितम हाए क्या करूँ

हसरत मोहानी

राह में मिलिए कभी मुझ से तो अज़-राह-ए-सितम

हसरत मोहानी

तोड़ कर अहद-ए-करम ना-आश्ना हो जाइए

हसरत मोहानी

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