संग Poetry (page 29)

हमारा कोह-ए-ग़म क्या संग-ए-ख़ारा है जो कट जाता

अफ़सर इलाहाबादी

फ़लक उन से जो बढ़ कर बद-चलन होता तो क्या होता

अफ़सर इलाहाबादी

शम्स मादूम है तारों में ज़िया है तो सही

अफ़रोज़ आलम

इबलाग़ के बदन में तजस्सुस का सिलसिला

आदिल मंसूरी

शामिल था ये सितम भी किसी के निसाब में

अदीम हाशमी

मेरे रस्ते में भी अश्जार उगाया कीजे

अदीम हाशमी

मैं गुफ़्तुगू हूँ कि तहरीर के जहान में हूँ

अदीम हाशमी

आया हूँ संग ओ ख़िश्त के अम्बार देख कर

अदीम हाशमी

ये हुक्म है तिरी राहों में दूसरा न मिले

अदा जाफ़री

वही ना-सबूरी-ए-आरज़ू वही नक़्श-ए-पा वही जादा है

अदा जाफ़री

उजाला दे चराग़-ए-रहगुज़र आसाँ नहीं होता

अदा जाफ़री

न बाम-ओ-दश्त न दरिया न कोहसार मिले

अदा जाफ़री

क्या जानिए किस बात पे मग़रूर रही हूँ

अदा जाफ़री

कोई संग-ए-रह भी चमक उठा तो सितारा-ए-सहरी कहा

अदा जाफ़री

घर का रस्ता भी मिला था शायद

अदा जाफ़री

फूल का या संग का इज़हार कर

अबुल हसनात हक़्क़ी

कोह-ए-ग़म से क्या ग़रज़ फ़िक्र-ए-बुताँ से क्या ग़रज़

अबू ज़ाहिद सय्यद यहया हुसैनी क़द्र

काली ग़ज़ल सुनो न सुहानी ग़ज़ल सुनो

अबु मोहम्मद सहर

तुम्हारी जब सीं आई हैं सजन दुखने को लाल अँखियाँ

आबरू शाह मुबारक

साँप सर मार अगर जो जावे मर

आबरू शाह मुबारक

हुआ हूँ दिल सेती बंदा पिया की मेहरबानी का

आबरू शाह मुबारक

देख तू बे-रहम आशिक़ नीं तुझे छोड़ा नहीं

आबरू शाह मुबारक

वसवसे दिल में न रख ख़ौफ़-ए-रसन ले के न चल

अबरार किरतपुरी

वो जो हर राह के हर मोड़ पर मिल जाता है

आबिद आलमी

किसी मक़ाम पे हम को भी रोकता कोई

आबिद आलमी

वो सो रहा है ख़ुदा दूर आसमानों में

अब्दुर्रहीम नश्तर

का'बा है कभी तो कभी बुत-ख़ाना बना है

अब्दुल्लतीफ़ शौक़

हसीन ख़्वाब न दे अब यक़ीन-ए-सादा दे

अब्दुल्लाह कमाल

मैं पहुँचा अपनी मंज़िल तक मगर आहिस्ता आहिस्ता

अब्दुल मन्नान तरज़ी

ख़्वाब की बस्ती में अफ़्साने का घर

अब्दुल मन्नान तरज़ी

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