संग Poetry (page 30)

जब निगाह-ए-तलब मो'तबर हो गई

अब्दुल मन्नान तरज़ी

मिरे दिल में है कि पूछूँ कभी मुर्शिद-ए-मुग़ाँ से

अब्दुल मजीद सालिक

जहाँ वो ज़ुल्फ़-ए-बरहम कारगर महसूस होती है

अब्दुल हमीद अदम

तुम्हारे संग-ए-तग़ाफ़ुल का क्यूँ करें शिकवा

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

दुआ को हाथ मिरा जब कभी उठा होगा

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

नक़्श-ए-दिल है सितम जुदाई का

अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़

जबीन-ए-शौक़ को कुछ और भी इज़्न-ए-सआदत दे

अब्दुल अलीम आसि

ख़बर के मोड़ पे संग-ए-निशाँ थी बे-ख़बरी

अब्दुल अहद साज़

हसरत-ए-दीद नहीं ज़ौक़-ए-तमाशा भी नहीं

अब्दुल अहद साज़

दरख़्त रूह के झूमे परिंद गाने लगे

अब्दुल अहद साज़

बजा कि पाबंद-ए-कूचा-ए-नाज़ हम हुए थे

अब्दुल अहद साज़

बजा कि पाबंद-ए-कूचा-ए-नाज़ हम हुए थे

अब्दुल अहद साज़

हर-चंद तिरी याद जुनूँ-ख़ेज़ बहुत है

अब्बास ताबिश

सितारे चाहते हैं माहताब माँगते हैं

अब्बास रिज़वी

ये तुम से किस ने कहा है कि दास्ताँ न कहो

अब्बास अलवी

वफ़ा और इश्क़ के रिश्ते बड़े ख़ुश-रंग होते हैं

आज़िम कोहली

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