कड़वा Poetry (page 2)

हमीं थे ऐसे सर-फिरे हमीं थे ऐसे मनचले

शमीम करहानी

ये क्या सितम-ज़रीफ़ी-ए-फ़ितरत है आज-कल

शकील बदायुनी

शिकवा-ए-इज़्तिराब कौन करे

शकील बदायुनी

हम उन की अंजुमन का समाँ बन के रह गए

शकील बदायुनी

कौन कहता है कि दरिया में रवानी कम है

शहज़ाद अहमद

अस्ल में हूँ मैं मुजरिम मैं ने क्यूँ शिकायत की

शहज़ाद अहमद

भर गए ज़ख़्म तो क्या दर्द तो अब भी कोई है

शाहिद कमाल

किस पे क़ाबू जो तुझी पे नहीं क़ाबू अपना

शाद अज़ीमाबादी

किस बुरी साअत से ख़त ले कर गया

शाद अज़ीमाबादी

चमन को आग लगाने की बात करता हूँ

शाद आरफ़ी

तमाम उम्र जिसे आब-ए-तल्ख़ से सींचा

सय्यद सफ़ी हसन

मिला न खेत से उस को भी आब-ओ-दाना क्या

सौरभ शेखर

कभी ख़्वाबों में मिला वो तो ख़यालों में कभी

सलमान अख़्तर

ज़मीं को सज्दा किया ख़ूँ से बा-वज़ू हो कर

सलीम शाहिद

सहराओं में जा पहुँची है शहरों से निकल कर

सलीम बेताब

तिरी जानिब से दिल में वसवसे हैं

सलीम अहमद

हज़ार शुक्र कभी तेरा आसरा न गया

सज्जाद बाक़र रिज़वी

जज़्बा-ए-इश्क़ भी है गर्मी-ए-बाज़ार भी है

साजिद सिद्दीक़ी लखनवी

मुझे सोचने दे

साहिर लुधियानवी

मादाम

साहिर लुधियानवी

शिकस्त-ए-आबला-ए-दिल में नग़्मगी है बहुत

सादिक़ नसीम

ये सोच के राख हो गया हूँ

साबिर ज़फ़र

हर तल्ख़ हक़ीक़त का इज़हार भी करना है

रूही कंजाही

थका ले और दौर-ए-आसमाँ तक

रियाज़ ख़ैराबादी

जो उन से कहो वो यक़ीं जानते हैं

रियाज़ ख़ैराबादी

दिल ढूँढती है निगह किसी की

रियाज़ ख़ैराबादी

कभी ख़ुर्शीद-ए-ज़िया-बार हूँ मैं

राज़ी अख्तर शौक़

रब्त-ए-पिन्हाँ की सदाक़त है न मिलना तेरा

रविश सिद्दीक़ी

ठहर जावेद के अरमाँ दिल-ए-मुज़्तर निकलते हैं

रशीद लखनवी

दिन को दिन रात को मैं रात न लिखने पाऊँ

राजेश रेड्डी

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