कड़वा Poetry (page 4)
तुम ये कहते हो अब कोई चारा नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ख़ुदा वो वक़्त न लाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
क़ंद-ए-दहन कुछ इस से ज़ियादा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
पछतावा
फ़हमीदा रियाज़
'एहसान' ऐसा तल्ख़ जवाब-ए-वफ़ा मिला
एहसान दानिश
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं
दाग़ देहलवी
फ़ज़ा में कैफ़-फ़शाँ फिर सहाब है साक़ी
चरख़ चिन्योटी
नज़र आता है वो जैसा नहीं है
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
न फ़क़त यार बिन शराब है तल्ख़
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है
बशीर बद्र
निरवान
बाक़र मेहदी
कभी आँखों पे कभी सर पे बिठाए रखना
बख़्श लाइलपूरी
कभी आँखों पे कभी सर पे बिठाए रखना
बख़्श लाइलपूरी
हम ये तो नहीं कहते कि ग़म कह नहीं सकते
ज़फ़र
कैफ़ियत-ए-दिल-ए-हज़ीं हम से नहीं बयाँ हुई
बीएस जैन जौहर
इक हम कि उन के वास्ते महव-ए-फ़ुग़ाँ रहे
अज़ीज़ वारसी
करते रहे तआ'क़ुब-ए-अय्याम उम्र-भर
अज़ीज़ तमन्नाई
रहगुज़ारों में रौशनी के लिए
अय्यूब रूमानी
किसे दिमाग़ कि उलझे तिलिस्म-ए-ज़ात के साथ
अताउर्रहमान क़ाज़ी
पर्दा और इस्मत
असरार-उल-हक़ मजाज़
गुरेज़
असरार-उल-हक़ मजाज़
ठहरे तो कहाँ ठहरे आख़िर मिरी बीनाई
असरारुल हक़ असरार
ज़मीं की रात
आसिफ़ रज़ा
कैसी आशुफ़्तगी-ए-सर है यहाँ
अासिफ़ जमाल
ये क्या कहा कि ग़म-ए-इश्क़ नागवार हुआ
असग़र गोंडवी
जब ज़रा रात हुई और मह ओ अंजुम आए
असद भोपाली
ग़म-ए-हयात से जब वास्ता पड़ा होगा
असद भोपाली
सच बोल के बचने की रिवायत नहीं कोई
असअ'द बदायुनी
जो बुत है यहाँ अपनी जा एक ही है
आरज़ू लखनवी
ऐ मिरे ज़ख़्म-ए-दिल-नवाज़ ग़म को ख़ुशी बनाए जा
आरज़ू लखनवी
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