कभी आँखों पे कभी सर पे बिठाए रखना
ज़िंदगी तल्ख़ सही दिल से लगाए रखना
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जो पी रहा है सदा ख़ून बे-गुनाहों का
घर भी वीराना लगे ताज़ा हवाओं के बग़ैर
रुत न बदले तो भी अफ़्सुर्दा शजर लगता है
पड़े हैं राह में जो लोग बे-सबब कब से
मिरे हर लफ़्ज़ की तौक़ीर रहने के लिए है
रुख़-ए-हयात है शर्मिंदा-ए-जमाल बहुत
दीदा-ए-बे-रंग में ख़ूँ-रंग मंज़र रख दिए
कोई शय दिल को बहलाती नहीं है
वही पत्थर लगा है मेरे सर पर
उसी के ज़ुल्म से मैं हालत-ए-पनाह में था
हमारे ख़्वाब चोरी हो गए हैं