हमारे ख़्वाब चोरी हो गए हैं
हमें रातों को नींद आती नहीं है
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
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Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Rahat Indori
Ahmad Faraz
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Anwar Masood
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रुत न बदले तो भी अफ़्सुर्दा शजर लगता है
वही पत्थर लगा है मेरे सर पर
कोई शय दिल को बहलाती नहीं है
जो पी रहा है सदा ख़ून बे-गुनाहों का
उसी के ज़ुल्म से मैं हालत-ए-पनाह में था
मिरे हर लफ़्ज़ की तौक़ीर रहने के लिए है
हुसूल-ए-मंज़िल-ए-जाँ का हुनर नहीं आया
दीदा-ए-बे-रंग में ख़ूँ-रंग मंज़र रख दिए
दर्द-ए-हिजरत के सताए हुए लोगों को कहीं
कभी आँखों पे कभी सर पे बिठाए रखना
घर भी वीराना लगे ताज़ा हवाओं के बग़ैर