वादों Poetry (page 2)

हम मौत भी आए तो मसरूर नहीं होते

फ़ानी बदायुनी

तिरे वादों पे कहाँ तक मिरा दिल फ़रेब खाए

फ़ना निज़ामी कानपुरी

दो घड़ी साए में जलने की अज़िय्यत और है

एज़ाज़ अफ़ज़ल

ऐ ग़म-ए-दिल ये माजरा क्या है

एलिज़ाबेथ कुरियन मोना

जो तू कहे तो शिकायत का ज़िक्र कम कर दें

चकबस्त ब्रिज नारायण

ज़बाँ को बंद करें या मुझे असीर करें

चकबस्त ब्रिज नारायण

दास्तान-ए-ग़म तुझे बतलाएँ क्या

बाबर रहमान शाह

झूटे वादों पर थी अपनी ज़िंदगी

अज़ीज़ लखनवी

ज़ालिम तिरे वादों ने दीवाना बना रक्खा

अज़ीज़ हैदराबादी

वो बात जिस से ये डर था खुली तो जाँ लेगी

आतिफ़ ख़ान

ए'तिराफ़

असरार-उल-हक़ मजाज़

मैं क्यूँ भूल जाऊँ

अर्श मलसियानी

पेच-ओ-ताब

अमजद नजमी

उन के वा'दों का हाल क्या कहिए

अमजद नजमी

उस के वादों से इतना तो साबित हुआ उस को थोड़ा सा पास-ए-तअल्लुक़ तो है

आमिर उस्मानी

दर्द बढ़ता गया जितने दरमाँ किए प्यास बढ़ती गई जितने आँसू पिए

आमिर उस्मानी

तुम नहीं आए थे जब

अली सरदार जाफ़री

फ़रेब-ए-जल्वा कहाँ तक ब-रू-ए-कार रहे

अली अख़्तर अख़्तर

मेरा दोस्त अबुल-हौल

अख़्तर-उल-ईमान

इन वफ़ादारी के वादों को इलाही क्या हुआ

अख़्तर शीरानी

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

अख़्तर शीरानी

आश्ना हो कर तग़ाफ़ुल आश्ना क्यूँ हो गए

अख़्तर शीरानी

मैं हूँ या तू है ख़ुद अपने से गुरेज़ाँ जैसे

अहमद नदीम क़ासमी

आवाज़ का उस की ज़ेर-ओ-बम कुछ याद रहा कुछ भूल गए

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

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