जो तू कहे तो शिकायत का ज़िक्र कम कर दें
मगर यक़ीं तिरे वा'दों पे ला नहीं सकते
Anwar Masood
Parveen Shakir
Jaun Eliya
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Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
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Mir Taqi Mir
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मज़ा है अहद-ए-जवानी में सर पटकने का
मर्सिया गोपाल कृष्ण गोखले
लखनऊ में फिर हुई आरास्ता बज़्म-ए-सुख़न
अगर दर्द-ए-मोहब्बत से न इंसाँ आश्ना होता
न कोई दोस्त दुश्मन हो शरीक-ए-दर्द-ओ-ग़म मेरा
वतन की ख़ाक से मर कर भी हम को उन्स बाक़ी है
दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-ईमाँ होना
अज़ीज़ान-ए-वतन को ग़ुंचा ओ बर्ग ओ समर जाना
उन्हें ये फ़िक्र है हर दम नई तर्ज़-ए-जफ़ा क्या है
कुछ ऐसा पास-ए-ग़ैरत उठ गया इस अहद-ए-पुर-फ़न में
ख़ुदा ने इल्म बख़्शा है अदब अहबाब करते हैं
नए झगड़े निराली काविशें ईजाद करते हैं