घाव Poetry (page 40)

ख़ुश-क़िस्मत हैं वो जो गाँव में लम्बी तान के सोते हैं

अफ़ज़ल परवेज़

गर्द उड़े या कोई आँधी ही चले

अफ़ज़ल परवेज़

मैं अपने दिल में नई ख़्वाहिशें सजाए हुए

अफ़ज़ल मिनहास

जो शख़्स भी मिला है वो इक ज़िंदा लाश है

अफ़ज़ल मिनहास

फ़ैसला

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

ये नहर-ए-आब भी उस की है मुल्क-ए-शाम उस का

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

कभी न ख़ुद को बद-अंदेश-ए-दश्त-ओ-दर रक्खा

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

असीर-ए-जिस्म हूँ दरवाज़ा तोड़ डाले कोई

आफ़ताब शम्सी

कभी जो रास्ता हमवार करने लगता हूँ

आफ़ताब हुसैन

पछता रहे हैं दर्द के रिश्तों को तोड़ कर

आफ़ताब आरिफ़

मुमकिन है शय वही हो मगर हू-ब-हू न हो

आफ़ताब अहमद

तिश्नगी बाक़ी रहे दीवानगी बाक़ी रहे

अफ़रोज़ तालिब

शम्स मादूम है तारों में ज़िया है तो सही

अफ़रोज़ आलम

ये नहीं वो रहगुज़र कुछ और है

आदिल हयात

तेरे लिए चले थे हम तेरे लिए ठहर गए

अदीम हाशमी

ग़म के हर इक रंग से मुझ को शनासा कर गया

अदीम हाशमी

आँखों में आँसुओं को उभरने नहीं दिया

अदीम हाशमी

हम अपना आप लुटाने कहाँ पे आ गए हैं

अदील ज़ैदी

ये हुक्म है तिरी राहों में दूसरा न मिले

अदा जाफ़री

यही नहीं कि ज़ख़्म-ए-जाँ को चारा-जू मिला नहीं

अदा जाफ़री

वही ना-सबूरी-ए-आरज़ू वही नक़्श-ए-पा वही जादा है

अदा जाफ़री

कोई संग-ए-रह भी चमक उठा तो सितारा-ए-सहरी कहा

अदा जाफ़री

कहते हैं कि अब हम से ख़ता-कार बहुत हैं

अदा जाफ़री

हर इक दरीचा किरन किरन है जहाँ से गुज़रे जिधर गए हैं

अदा जाफ़री

वो आ रहा था मगर मैं निकल गया कहीं और

अबुल हसनात हक़्क़ी

ये इक और हम ने क़रीना किया

अबुल हसनात हक़्क़ी

ये इक और हम ने क़रीना किया

अबुल हसनात हक़्क़ी

फूल का या संग का इज़हार कर

अबुल हसनात हक़्क़ी

नुमू तो पहले भी था इज़्तिराब मैं ने दिया

अबुल हसनात हक़्क़ी

काली ग़ज़ल सुनो न सुहानी ग़ज़ल सुनो

अबु मोहम्मद सहर

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