चेन Poetry (page 14)

जज़्बों को किया ज़ंजीर तो क्या तारों को किया तस्ख़ीर तो क्या

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

आँख से बिछड़े काजल को तहरीर बनाने वाले

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

सुब्ह तक जिन से बहुत बेज़ार हो जाता हूँ मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

समझते हैं जो अपने बाप की जागीर मिट्टी को

ग़ुलाम हुसैन साजिद

इक शम्अ' की सूरत में मंज़ूर किया जाऊँ

ग़ुलाम हुसैन साजिद

दस्त-ए-राहत ने कभी रँज-ए-गिराँ-बारी ने

ग़ुलाम हुसैन साजिद

दास्तान-ए-दर्द-ए-दिल अहल-ए-वफ़ा कहने लगे

ग़ुलाम हुसैन अयाज़

इक सर्द-जंग का है असर मेरे ख़ून में

ग़ौसिया ख़ान सबीन

बस-कि हूँ 'ग़ालिब' असीरी में भी आतिश ज़ेर-ए-पा

ग़ालिब

तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं

ग़ालिब

सियाही जैसे गिर जाए दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर

ग़ालिब

क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी न जानें मेरे शेवन को

ग़ालिब

पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का

ग़ालिब

पा-ब-दामन हो रहा हूँ बस-कि मैं सहरा-नवर्द

ग़ालिब

निकोहिश है सज़ा फ़रियादी-ए-बे-दाद-ए-दिलबर की

ग़ालिब

नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का

ग़ालिब

माना-ए-दश्त-नवर्दी कोई तदबीर नहीं

ग़ालिब

कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया

ग़ालिब

जुनूँ तोहमत-कश-ए-तस्कीं न हो गर शादमानी की

ग़ालिब

जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी

ग़ालिब

हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था

ग़ालिब

दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या

ग़ालिब

ब-नाला हासिल-ए-दिल-बस्तगी फ़राहम कर

ग़ालिब

दिल सिलसिला-ए-शौक़ की तश्हीर भी चाहे

गौहर होशियारपुरी

दिल सिलसिला-ए-शौक़ की तश्हीर भी चाहे

गौहर होशियारपुरी

निगाह-ए-हुस्न की तासीर बन गया शायद

फ़ितरत अंसारी

आज़ादी

फ़िराक़ गोरखपुरी

रस्म-ओ-राह-ए-दहर क्या जोश-ए-मोहब्बत भी तो हो

फ़िराक़ गोरखपुरी

'फ़िराक़' इक नई सूरत निकल तो सकती है

फ़िराक़ गोरखपुरी

आँखों में जो बात हो गई है

फ़िराक़ गोरखपुरी

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