अधिक Poetry (page 3)

दिल को रहीन-ए-बंद-ए-क़बा मत किया करो

ज़फ़र इक़बाल

ब-ज़ाहिर सेहत अच्छी है जो बीमारी ज़ियादा है

ज़फ़र इक़बाल

बात ऐसी भी कोई नहीं कि मोहब्बत बहुत ज़ियादा है

ज़फ़र इक़बाल

अपने दिल-ए-मुज़्तर को बेताब ही रहने दो

ज़फ़र हमीदी

अश्क-ए-ग़म आँख से बाहर भी नहीं आने का

ज़फ़र गोरखपुरी

तर्क उल्फ़त में भी उस ने ये रिवायत रक्खी

यशब तमन्ना

ख़्वाब ता'बीर में बदलता है

यशब तमन्ना

शौक़ की कम-निगही भी है गवारा मुझ को

याक़ूब उस्मानी

वो राहबर तो नहीं था इआदा क्या करता

याक़ूब आरिफ़

किस मुँह से कहें गुनाह क्या हैं

वज़ीर अली सबा लखनवी

उदास रातों में तेज़ कॉफ़ी की तल्ख़ियों में

वसी शाह

ये मानता हूँ कि सौ बार झूट कहता है

वक़ार ख़ान

बे-मिस्ल-ओ-बे-हिसाब उजालों के बा'द भी

वक़ार ख़ान

तिरे कलाम ने कैसा असर किया वाइ'ज़

वलीउल्लाह मुहिब

फूँक दे है मुँह तिरा हर साफ़-दिल के तन में आग

वली उज़लत

दिलों में रहिए जहाँ के वले ख़ुदा के ढब

वली उज़लत

तुझ से बिछड़ के यूँ तो बहुत जी उदास है

वाली आसी

वो एक हाथ बढ़ाएगा तुझ को पा लेगा

विपुल कुमार

उसे तो दौलत-ए-दुनिया भी कम भी पाने को

विपुल कुमार

तमाम इश्क़ की मोहलत है इस आँखों में

विपुल कुमार

सफीर-ए-इश्क़ हमें अब तो हम सफ़र कर लो

विपुल कुमार

मैं तो शब-ए-फ़िराक़ था तुम एक उम्र थी

विपुल कुमार

हमीं ने हश्र उठा रक्खा है बिछड़ने पर

विपुल कुमार

दिलों पे दर्द का इम्कान भी ज़ियादा नहीं

विपुल कुमार

बचा के आँख बिछड़ जाएँ उस से चुपके से

विपुल कुमार

दिलों पे दर्द का इम्कान भी ज़ियादा नहीं

विपुल कुमार

वो निहत्ता नहीं अकेला है

विकास शर्मा राज़

किसी से और तो क्या गुफ़्तुगू करें दिल की

उम्मीद फ़ाज़ली

ख़ाक-ए-हिंद

तिलोकचंद महरूम

काम कुछ ऐसे कर गया हूँ मैं

तरकश प्रदीप

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