तमाम इश्क़ की मोहलत है इस आँखों में
और एक लमहा-ए-इमकान भी ज़ियादा नहीं
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इक दिन तिरी गली में मुझे ले गई हवा
दिलों पे दर्द का इम्कान भी ज़ियादा नहीं
सफीर-ए-इश्क़ हमें अब तो हम सफ़र कर लो
इक रोज़ खेल खेल में हम उस के हो गए
हमीं ने हश्र उठा रक्खा है बिछड़ने पर
इतना हैरान न हो मेरी अना पर प्यारे
बचा के आँख बिछड़ जाएँ उस से चुपके से
कुछ इस लिए भी तिरी आरज़ू नहीं है मुझे
इस से पहले कि ये आज़ार गवारा कर लें
बदन में आग है रोग़न मिरे ख़याल में है