कुछ इस लिए भी तिरी आरज़ू नहीं है मुझे
मैं चाहता हूँ मिरा इश्क़ जावेदानी हो
Rahat Indori
Parveen Shakir
Anwar Masood
Habib Jalib
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Wasi Shah
Gulzar
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(576) Peoples Rate This
वक़्त की ताक़ पे दोनों की सजाई हुई रात
हमीं ने हश्र उठा रक्खा है बिछड़ने पर
जुनूँ के बाब में अब के ये राएगानी हो
वो एक हाथ बढ़ाएगा तुझ को पा लेगा
इक लम्हा-ए-फ़िराक़ पे वारा गया मुझे
इतना हैरान न हो मेरी अना पर प्यारे
दिलों पे दर्द का इम्कान भी ज़ियादा नहीं
मुझ से कब उस को मोहब्बत थी मगर मेरे बा'द
बदन में आग है रोग़न मिरे ख़याल में है
बचा के आँख बिछड़ जाएँ उस से चुपके से
तमाम इश्क़ की मोहलत है इस आँखों में
इस से पहले कि ये आज़ार गवारा कर लें