दर्पण Poetry (page 28)

तुम्हारे हिज्र में क्यूँ ज़िंदगी न मुश्किल हो

अफ़सर इलाहाबादी

अक्स-बर-अक्स

अफ़रोज़ आलम

फैले हुए ग़ुबार का फिर मो'जिज़ा भी देख

अफ़रोज़ आलम

मेरे जुनून-ए-शौक़ को इतनी सी काएनात बस

अफ़ीफ़ सिराज

हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद

आदिल मंसूरी

एक आईना रू-ब-रू है अभी

अदा जाफ़री

न बाम-ओ-दश्त न दरिया न कोहसार मिले

अदा जाफ़री

एक आईना रू-ब-रू है अभी

अदा जाफ़री

इन शोख़ हसीनों की अदा और ही कुछ है

अबुल कलाम आज़ाद

है आम अज़ल ही से फ़ैज़ान मोहब्बत का

अबू ज़ाहिद सय्यद यहया हुसैनी क़द्र

हसरत-ए-दीद रही दीद का ख़्वाहाँ हो कर

अबु मोहम्मद वासिल

मैं ने कल तोड़ा इक आईना तो महसूस हुआ

अबरार आज़मी

उस ने कल भागते लम्हों को पकड़ रक्खा था

अबरार आज़मी

सन्नाटे का दर्द निखारा करता हूँ

अबरार आज़मी

निकाल लाए हैं सब लोग उस के अक्स में नक़्स

आबिद मलिक

ये कौन मेरे अलावा मिरे वजूद में है

अब्दुर्राहमान वासिफ़

ख़मोशी मेरी लय में गुनगुनाना चाहती है

अब्दुर रऊफ़ उरूज

साकिन है कोई और वतन और किसी का

अब्दुल वहाब सुख़न

कैसे रखेंगे सर पे किसी का उधार हम

अब्दुल मतीन नियाज़

होंकते दश्त में इक ग़म का समुंदर देखो

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

आवाज़ के मोती

अब्दुल अहद साज़

सोच कर भी क्या जाना जान कर भी क्या पाया

अब्दुल अहद साज़

मरने की पुख़्ता-ख़याली में जीने की ख़ामी रहने दो

अब्दुल अहद साज़

बातिन से सदफ़ के दुर-ए-नायाब खुलेंगे

अब्दुल अहद साज़

है जिस्म सख़्त मगर दिल बहुत ही नाज़ुक है

अब्बास दाना

मिरा ख़ुलूस अभी सख़्त इम्तिहान में है

अब्बास दाना

रुमूज़-ए-मस्लहत को ज़ेहन पर तारी नहीं करता

आसी करनाली

अदा है ख़्वाब है तस्कीन है तमाशा है

आमिर सुहैल

तू पयम्बर सही ये मो'जिज़ा काफ़ी तो नहीं

आल-ए-अहमद सूरूर

नवा-ए-शौक़ में शोरिश भी है क़रार भी है

आल-ए-अहमद सूरूर

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