दर्पण Poetry (page 2)

साँप

ज़ीशान साहिल

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ज़ीशान साहिल

एक लड़की ने आईना देखा

ज़ीशान साहिल

मिरी जगह कोई आईना रख लिया होता

ज़ेब ग़ौरी

कम रौशन इक ख़्वाब आईना इक पीला मुरझाया फूल

ज़ेब ग़ौरी

सेहन-ए-चमन में जाना मेरा और फ़ज़ा में बिखर जाना

ज़ेब ग़ौरी

मुझ से ऐसे वामांदा-ए-जाँ को बिस्तर-विस्तर क्या

ज़ेब ग़ौरी

मैं छू सकूँ तुझे मेरा ख़याल-ए-ख़ाम है क्या

ज़ेब ग़ौरी

लगाऊँ हाथ तुझे ये ख़याल-ए-ख़ाम है क्या

ज़ेब ग़ौरी

ख़ाक आईना दिखाती है कि पहचान में आ

ज़ेब ग़ौरी

गर्म लहू का सोना भी है सरसों की उजयाली में

ज़ेब ग़ौरी

इक पीली चमकीली चिड़िया काली आँख नशीली सी

ज़ेब ग़ौरी

अक्स-ए-फ़लक पर आईना है रौशन आब ज़ख़ीरों का

ज़ेब ग़ौरी

वो हो कैसा ही दुबला तार बिस्तर हो नहीं सकता

ज़रीफ़ लखनवी

कौन कहता है गुम हुआ परतव

ज़की तारिक़

महकी शब आईना देखे अपने बिस्तर से बाहर

ज़काउद्दीन शायाँ

'अनीस-नागी' के नाम

ज़ाहिद मसूद

जहान-ए-तंग में तन्हा हुआ मैं

ज़ाहिद फ़ारानी

क्या दुआ-ए-फ़र्सूदा हर्फ़-ए-बे-असर माँगूँ

ज़हीर ग़ाज़ीपुरी

दर्द इन दिनों यूँ चेहरा-ए-आलम पे सजा है

ज़हीर फ़तेहपूरी

क्या ख़बर किस मोड़ पर बिखरे मता-ए-एहतियात

ज़फ़र मुरादाबादी

बे-क़नाअत क़ाफ़िले हिर्स-ओ-हवा ओढ़े हुए

ज़फ़र मुरादाबादी

साहिल पर दरिया की लहरें सज्दा करती रहती हैं

ज़फर इमाम

ज़मीं फिर दर्द का ये साएबाँ कोई नहीं देगा

ज़फ़र गोरखपुरी

शहर लगता है बयाबान मुझे

यूसुफ़ ज़फ़र

ख़्वाब आईना कर रही है दिल में

यूसुफ़ हसन

ग़फ़लत अजब है हम को दम जिस का मारते हैं

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

ढूँढ हम उन को परेशान बने बैठे हैं

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

अयाँ हो आप बेगाना बनाया

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

बारिश रुकी वबाओं का बादल भी छट गया

यासीन अफ़ज़ाल

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