दर्पण Poetry (page 3)

ख़ुश-फ़हमियों को ग़ौर का यारा नहीं रहा

याक़ूब उस्मानी

जिस्म और साए

यहया अमजद

सलामत रहें दिल में घर करने वाले

यगाना चंगेज़ी

काम दीवानों को शहरों से न बाज़ारों से

यगाना चंगेज़ी

अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा

वसीम बरेलवी

गई है शाम अभी ज़ख़्म ज़ख़्म कर के मुझे

वक़ार मानवी

हालात से फ़रार की क्या जुस्तुजू करें

वामिक़ जौनपुरी

क्या कहूँ कि क्या हूँ मैं

वलीउल्लाह वली

आप की नज़रों में शायद इस लिए अच्छा हूँ मैं

वलीउल्लाह वली

शब-ए-फ़िराक़ न काटे कटे है क्या कीजे

वलीउल्लाह मुहिब

कुछ ग़ौर का जौहर नहीं ख़ुद-फ़हमी में हैराँ हैं

वली उज़लत

जिस पर नज़र पड़े उसे ख़ुद से निकालना

वली उज़लत

तुझ से बोसा मैं न माँगा कभू डरते डरते

वली उज़लत

अबस तोड़ा मिरा दिल नाज़ सिखलाने के काम आता

वली उज़लत

कमर उस दिलरुबा की दिलरुबा है

वली मोहम्मद वली

शौक़ फिर कूचा-ए-जानाँ का सताता है मुझे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

पोशीदा देखती है किसी की नज़र मुझे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

इस तरह हुस्न-ओ-मोहब्बत की करो तुम तफ़्सीर

वाहिद प्रेमी

अँधेरा इतना नहीं है कि कुछ दिखाई न दे

वहीद अख़्तर

ख़ाक के पुतलों में पत्थर के बदन को वास्ता

वहाब दानिश

इश्क़ फिर इश्क़ है आशुफ़्ता-सरी माँगे है

उनवान चिश्ती

इल्म ओ फ़न के राज़-ए-सर-बस्ता को वा करता हुआ

उमैर मंज़र

जीना है तो जीने की पहली सी अदा माँगो

तुफ़ैल अहमद मदनी

लफ़्ज़ की क़ैद से रिहा हो जा

तौक़ीर तक़ी

देखें कितने चाहने वाले निकलेंगे

तारिक़ क़मर

वो आईना है तो हैरत किसी जमाल की हो

तारिक़ नईम

फिर इस से क़ब्ल कि बार-ए-दिगर बनाया जाए

तारिक़ नईम

मुझे ज़िंदगी से ख़िराज ही नहीं मिल रहा

तारिक़ नईम

हवा का हुक्म भी अब के नज़र में रक्खा जाए

तारिक़ नईम

नज़र का नश्शा बदन का ख़ुमार टूट गया

तारिक़ बट

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