दर्पण Poetry (page 5)

एक दिन मेरा आईना मुझ को

सुरेन्द्र शजर

अश्क आँखों में छुपा लेता हूँ मैं

सुरेन्द्र शजर

आईना देखना

सूरज नारायण मेहर

अपने ही टूटे हुए ख़्वाबों को दिल चुनता भी है

सुल्तान सब्र वानी

मुसीबत में भी ग़ैरत-आश्ना ख़ामोश रहती है

सुल्तान अख़्तर

ख़्वाबों की लज़्ज़तों पे थकन का ग़िलाफ़ था

सुल्तान अख़्तर

ख़ाक उड़ती है ख़रीदार कहाँ खो गए हैं

सुल्तान अख़्तर

नंग-ए-एहसास है अंदोह-ए-ग़रीब-उल-वतनी

सुलैमान आसिफ़

दुनिया के कुछ न कुछ तो तलबगार से रहे

सुहैल अहमद ज़ैदी

बंद हो जाए मिरी आँख अगर

सूफ़ी तबस्सुम

दिल के दीवार-ओ-दर पे क्या देखा

सुदर्शन फ़ाकिर

एक इक क़तरा जोड़ कर रक्खा

सोनरूपा विशाल

निगाह मुझ से मिलाने की उन में ताब नहीं

सिया सचदेव

यौम-ए-आज़ादी

सिराज लखनवी

तुझे पा के तुझ से जुदा हो गए हम

सिराज लखनवी

ख़याल-ए-दोस्त न मैं याद-ए-यार में गुम हूँ

सिराज लखनवी

ख़ाक हूँ ए'तिबार की सौगंद

सिराज औरंगाबादी

ख़बर-ए-तहय्युर-ए-इश्क़ सुन न जुनूँ रहा न परी रही

सिराज औरंगाबादी

जिस कूँ पियो के हिज्र का बैराग है

सिराज औरंगाबादी

रात हुई फिर हम से इक नादानी थोड़ी सी

सिद्दीक़ मुजीबी

दिल-ए-आईना-सामाँ पारा पारा कर के देखा जाए

सिद्दीक़ मुजीबी

जब खुले मुट्ठी तो सब पढ़ लें ख़त-ए-तक़्दीर को

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

जाने क्या बात है मानूस बहुत लगता है

शोहरत बुख़ारी

दिल ने किस मंज़िल-ए-बे-नाम में छोड़ा था मुझे

शोहरत बुख़ारी

जो तसव्वुर में है उस को कोई क्या रौशन करे

शोएब निज़ाम

दाग़ हुस्न-ए-क़मर भी होता है

शिव दयाल सहाब

मुस्लिम-लीग

शिबली नोमानी

क़ुफ़्ल-ए-सद-ख़ाना-ए-दिल आया जो तू टूट गए

ज़ौक़

गुहर को जौहरी सर्राफ़ ज़र को देखते हैं

ज़ौक़

दिखला न ख़ाल-ए-नाफ़ तू ऐ गुल-बदन मुझे

ज़ौक़

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