दर्पण Poetry (page 7)

क्या सताते हो रहो बंदा-नवाज़

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जो मय-ख़ाने में जाता था क़दम रखते झिझकता था

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

ये जब है कि इक ख़्वाब से रिश्ता है हमारा

शहरयार

मैं वापस आऊँगा

शहराम सर्मदी

तेरी तख़्लीक़ तिरा रंग हवाला था मिरा

शहनवाज़ ज़ैदी

इक हुजूम-ए-गिर्या की हर नज़र तमाशाई

शाहिदा तबस्सुम

सराब-ए-शब भी है ख़्वाब-ए-शिकस्ता-पा भी है

शाहिदा हसन

सलीक़ा इश्क़ में मेरा बड़े कमाल का था

शाहिदा हसन

चराग़-ए-शाम ही तन्हा नहीं है

शाहिदा हसन

मैं अपने हिस्से की तन्हाई महफ़िल से निकालूँगा

शाहिद ज़की

क्या कहूँ कैसे इज़्तिरार में हूँ

शाहिद ज़की

जिधर भी देखिए इक रास्ता बना हुआ है

शाहिद ज़की

ग़म की तहज़ीब अज़िय्यत का क़रीना सीखें

शाहिद माहुली

ग़म की तहज़ीब अज़िय्यत का क़रीना सीखें

शाहिद माहुली

अक्स आईना-ख़ाना से अलग रक्खा है

शाहिद कमाल

जो देखता है मुझे आईने के अंदर से

शाहिद कलीम

रेत की लहरों से दरिया की रवानी माँगे

शाहिद कबीर

वो एक ख़्वाब कि आँखों में जगमगा रहा है

शहबाज़ ख़्वाजा

सफ़र का एक नया सिलसिला बनाना है

शहबाज़ ख़्वाजा

भटक रहे हैं ग़म-ए-आगही के मारे हुए

शहबाज़ ख़्वाजा

तलाश

शहाब जाफ़री

रंग मैला न हुआ जामा-ए-उर्यानी का

शाह नसीर

निकहत-ए-गुल हैं या सबा हैं हम

शाह नसीर

न ज़िक्र-ए-आश्ना ने क़िस्सा-ए-बेगाना रखते हैं

शाह नसीर

जो गुज़रे है बर आशिक़-ए-कामिल नहीं मालूम

शाह नसीर

दिखा दो गर माँग अपनी शब को तो हश्र बरपा हो कहकशाँ पर

शाह नसीर

छोड़ा न तुझे ने राम क्या ये भी न हुआ वो भी न हुआ

शाह नसीर

ये किस के सोज़ का है बज़्म-ए-जाँ में इंतिज़ार ऐ दिल

शाह दीन हुमायूँ

आशिक़-ए-ज़ार हूँ जुज़ इश्क़ मुझे काम नहीं

शाह आसिम

हम ने बाँधे हैं उस पे क्या क्या जोड़

शाद लखनवी

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