दर्पण Poetry (page 6)

अज़ीज़ो इस को न घड़ियाल की सदा समझो

ज़ौक़

एक दिन न रोने का फ़ैसला किया मैं ने

शहपर रसूल

दर-गुज़र

शाज़ तमकनत

ज़रा सी बात थी बात आ गई जुदाई तक

शाज़ तमकनत

वो कौन है जिस की वहशत पर सुनते हैं कि जंगल रोता है

शाज़ तमकनत

साँसों में बसे हो तुम आँखों में छुपा लूँगा

शाज़ तमकनत

सँभला नहीं दिल तुझ से बिछड़ कर कई दिन तक

शाज़ तमकनत

कोई तन्हाई का एहसास दिलाता है मुझे

शाज़ तमकनत

इतरा के आईना में चिढ़ाते थे अपना मुँह

शौक़ क़िदवाई

इक जफ़ा-जू से मोहब्बत हो गई

शौक़ बहराइची

तन से जब तक साँस का रिश्ता रहेगा

शारिक़ कैफ़ी

हाथ आता तो नहीं कुछ प तक़ाज़ा कर आएँ

शारिक़ कैफ़ी

क़ुदरत है तुर्फ़ा-कार तुझे कुछ ख़बर भी है

शारिक़ ईरायानी

दूर फ़ज़ा में एक परिंदा खोया हुआ उड़ानों में

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

महबूब सा अंदाज़-ए-बयाँ बे-अदबी है

शमीम तारिक़

किसी से पूछें कौन बताए किस ने महशर देखा है

शमीम तारिक़

ख़मोश किस लिए बैठे हो चश्म-ए-तर क्यूँ हो

शमीम करहानी

फ़ासला तो है मगर कोई फ़ासला नहीं

शमीम करहानी

कभी सहरा में रहते हैं कभी पानी में रहते हैं

शमीम हनफ़ी

रोज़ शाम होती है रोज़ हम सँवरते हैं

शकीला बानो

लतीफ़ पर्दों से थे नुमायाँ मकीं के जल्वे मकाँ से पहले

शकील बदायुनी

कैसे कह दूँ की मुलाक़ात नहीं होती है

शकील बदायुनी

आँख से आँख मिलाता है कोई

शकील बदायुनी

चढ़ा हुआ है जो दरिया उतरने वाला है

शकील आज़मी

काला पत्थर

शकेब जलाली

साथ ग़ुर्बत में कोई ग़ैर न अपना निकला

शकेब बनारसी

न दिन ही चैन से गुज़रा न कोई रात मिरी

शाइक़ मुज़फ़्फ़रपुरी

चाँद-सूरज न सही एक दिया हूँ मैं भी

शाइक़ मुज़फ़्फ़रपुरी

हुस्न आईना फ़ाश करता है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

न बुलबुल में न परवाने में देखा

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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