दर्पण Poetry (page 8)

बद-गुमानी जो हुई शम्अ' से परवाने को

शाद लखनवी

कुछ कहे जाता था ग़र्क़ अपने ही अफ़्साने में था

शाद अज़ीमाबादी

काबा ओ दैर में जल्वा नहीं यकसाँ उन का

शाद अज़ीमाबादी

ऐ बुत जफ़ा से अपनी लिया कर वफ़ा का काम

शाद अज़ीमाबादी

नई बहार का था मुंतज़िर चमन मेरा

शबनम वहीद

वो तो आईना-नुमा था मुझ को

शबनम शकील

शब-चराग़ कर मुझ को ऐ ख़ुदा अँधेरे में

शबनम रूमानी

नज़्म

शबनम अशाई

वो जो फ़िरदौस-ए-नज़र है आईना-ख़ाना अभी

सेहर इश्क़ाबादी

जब सबक़ दे उन्हें आईना ख़ुद-आराई का

सेहर इश्क़ाबादी

सफ़र में गर्द छटी रास्ता दिखाई दिया

सीमान नवेद

मिरे हक़ में कोई ऐसी दुआ कर

सीमान नवेद

वो आईना हो या हो फूल तारा हो कि पैमाना

सीमाब अकबराबादी

दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में

सीमाब अकबराबादी

सुबू पर जाम पर शीशे पे पैमाने पे क्या गुज़री

सीमाब अकबराबादी

कमाल-ए-इलम ओ तहक़ीक़-ए-मुकम्मल का ये हासिल है

सीमाब अकबराबादी

जब तक ग़म-ए-उल्फ़त का उंसुर न मिला होगा

सीमाब अकबराबादी

ग़म मुझे हसरत मुझे वहशत मुझे सौदा मुझे

सीमाब अकबराबादी

दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में

सीमाब अकबराबादी

हिसाब-ए-तर्क-तअल्लुक़ तमाम मैं ने किया

सऊद उस्मानी

अजाइब-ख़ाना

सरवत ज़ेहरा

ढूँडते ढूँडते ख़ुद को मैं कहाँ जा निकला

सरवर आलम राज़

यक-ब-यक मंज़र-ए-हस्ती का नया हो जाना

सरवत हुसैन

सफ़ीना रखता हूँ दरकार इक समुंदर है

सरवत हुसैन

गदा-ए-शहर-ए-आइंदा तही-कासा मिलेगा

सरवत हुसैन

फ़ुरात-ए-फ़ासिला से दजला-ए-दुआ से उधर

सरवत हुसैन

अच्छा सा कोई सपना देखो और मुझे देखो

सरवत हुसैन

जहाँ चौखट है वाँ ज़ीना था पहले

सरफ़राज़ ज़ाहिद

मज़ा देखा किसी को ऐ परी-रू मुँह लगाने का

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

हम तो यूँ उलझे कि भूले आप ही अपना ख़याल

समीना राजा

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