वो आईना हो या हो फूल तारा हो कि पैमाना
कहीं जो कुछ भी टूटा मैं यही समझा मिरा दिल है
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दुनिया है ख़्वाब हासिल-ए-दुनिया ख़याल है
ये शराब-ए-इश्क़ ऐ 'सीमाब' है पीने की चीज़
गौतम-बुद्ध
वो दुनिया थी जहाँ तुम बंद करते थे ज़बाँ मेरी
न वो फ़रियाद का मतलब न मंशा-ए-फ़ुग़ाँ समझे
मैं देखता हूँ आप को हद्द-ए-निगाह तक
अब वहाँ दामन-कशी की फ़िक्र दामन-गीर है
लहू से मैं ने लिखा था जो कुछ दीवार-ए-ज़िंदाँ पर
खो कर तिरी गली में दिल-ए-बे-ख़बर को मैं
ख़त्म इस तरह नज़ा-ए-हक़-ओ-बातिल हो जाए
जल्वा-गाह-ए-दिल में मरते ही अँधेरा हो गया
बरसात