मैं देखता हूँ आप को हद्द-ए-निगाह तक
लेकिन मिरी निगाह का क्या ए'तिबार है
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क़फ़स की तीलियों में जाने क्या तरकीब रक्खी है
रंग भरते हैं वफ़ा का जो तसव्वुर में तिरे
गुनाहों पर वही इंसान को मजबूर करती है
जल्वा-गाह-ए-दिल में मरते ही अँधेरा हो गया
इश्क़ ख़ुद माइल-ए-हिजाब है आज
बरसात
ये शराब-ए-इश्क़ ऐ 'सीमाब' है पीने की चीज़
ख़ुदा और नाख़ुदा मिल कर डुबो दें ये तो मुमकिन है
आँख से टपका जो आँसू वो सितारा हो गया
अब ऐ बे-दर्द क्या इस के लिए इरशाद होता है
वो जब रंग-ए-परेशानी को ख़ल्वत-गीर देखेंगे
परेशाँ होने वालों को सुकूँ कुछ मिल भी जाता है