मंज़िल मिली मुराद मिली मुद्दआ मिला
सब कुछ मुझे मिला जो तिरा नक़्श-ए-पा मिला
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छुपाता हूँ मगर छुपता नहीं दर्द-ए-निहाँ फिर भी
हम हैं सर-ता-बा-पा तमन्ना
वुसअतें महदूद हैं इदराक-ए-इंसाँ के लिए
बड़ी दिलचस्पियों से सुब्ह-ए-शाम-ए-ज़िंदगी होगी
ख़ुलूस-ए-दिल से सज्दा हो तो उस सज्दे का क्या कहना
कहानी है तो इतनी है फ़रेब-ए-ख़्वाब-ए-हस्ती की
दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में
जब दिल पे छा रही हों घटाएँ मलाल की
चमक जुगनू की बर्क़-ए-बे-अमाँ मालूम होती है
शुक्रिया हस्ती का! लेकिन तुम ने ये क्या कर दिया
मुझे फ़िक्र-ओ-सर-ए-वफ़ा है हनूज़
तुझे दानिस्ता महफ़िल में जो देखा हो तो मुजरिम हूँ