क़फ़स की तीलियों में जाने क्या तरकीब रक्खी है
कि हर बिजली क़रीब-ए-आशियाँ मालूम होती है
Faiz Ahmad Faiz
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Anwar Masood
Habib Jalib
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ख़त्म इस तरह नज़ा-ए-हक़-ओ-बातिल हो जाए
हुस्न के दिल में जगह पाते ही दीवाना बने
नसीम-ए-सुब्ह गुलशन में गुलों से खेलती होगी
सुबू पर जाम पर शीशे पे पैमाने पे क्या गुज़री
कहानी मेरी रूदाद-ए-जहाँ मालूम होती है
मिरी ख़ामोशियों पर दुनिया मुझ को तअन देती है
नाहक़ शिकायत-ए-ग़म-ए-दुनिया करे कोई
ख़ुद उठ के हाथ मेरे गरेबाँ में आ गए
माज़ी-ए-मरहूम की नाकामियों का ज़िक्र छोड़
कमाल-ए-इलम ओ तहक़ीक़-ए-मुकम्मल का ये हासिल है
तक़दीर में इज़ाफ़ा-ए-सोज़-ए-वफ़ा हुआ
सारे चमन को मैं तो समझता हूँ अपना घर