रंग भरते हैं वफ़ा का जो तसव्वुर में तिरे
तुझ से अच्छी तिरी तस्वीर बना लेते हैं
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न वो फ़रियाद का मतलब न मंशा-ए-फ़ुग़ाँ समझे
जब तक ग़म-ए-उल्फ़त का उंसुर न मिला होगा
सारे चमन को मैं तो समझता हूँ अपना घर
मुझे फ़िक्र-ओ-सर-ए-वफ़ा है हनूज़
जो सालिक है तो अपने नफ़्स का इरफ़ान पैदा कर
जहान-ए-रंग-ओ-बू में मुस्तक़िल तख़्लीक़-ए-मस्ती है
ये दौर-ए-तरक़्क़ी है रिफ़अत का ज़माना है
अफ़सोस गुज़र गई जवानी
हाए 'सीमाब' उस की मजबूरी
मोहब्बत में इक ऐसा वक़्त भी आता है इंसाँ पर
कहानी मेरी रूदाद-ए-जहाँ मालूम होती है
आ अपने दिल में मेरी तमन्ना लिए हुए