मोहब्बत में इक ऐसा वक़्त भी आता है इंसाँ पर
सितारों की चमक से चोट लगती है रग-ए-जाँ पर
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सुकूँ-पज़ीर जुनून-ए-शबाब हो न सका
आ अपने दिल में मेरी तमन्ना लिए हुए
ख़ुदा और नाख़ुदा मिल कर डुबो दें ये तो मुमकिन है
जाग और देख ज़रा आलम-ए-वीराँ मेरा
हस्ती को मिरी मस्ती-ए-पैमाना बना दे
मरकज़ पे अपने धूप सिमटती है जिस तरह
अब ऐ बे-दर्द क्या इस के लिए इरशाद होता है
हद हो कोई तो सब्र तिरे हिज्र पर करें
इश्क़ ख़ुद माइल-ए-हिजाब है आज
क्यूँ जाम-ए-शराब-ए-नाब माँगूँ
दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में
जो उम्र तेरी तलब में गँवाए जाते हैं