हाए 'सीमाब' उस की मजबूरी
जिस ने की हो शबाब में तौबा
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जो सालिक है तो अपने नफ़्स का इरफ़ान पैदा कर
अंजाम हर इक शय का ब-जुज़ ख़ाक नहीं है
शुक्रिया हस्ती का! लेकिन तुम ने ये क्या कर दिया
चमक जुगनू की बर्क़-ए-बे-अमाँ मालूम होती है
हुस्न के दिल में जगह पाते ही दीवाना बने
कमाल-ए-इलम ओ तहक़ीक़-ए-मुकम्मल का ये हासिल है
जरस है कारवान-ए-अहल-ए-आलम में फ़ुग़ाँ मेरी
शाम-ए-फ़ुर्क़त इंतिहा-ए-गर्दिश-ए-अय्याम है
इश्क़ ख़ुद माइल-ए-हिजाब है आज
क़फ़स की तीलियों में जाने क्या तरकीब रक्खी है
जहान-ए-रंग-ओ-बू में मुस्तक़िल तख़्लीक़-ए-मस्ती है
लहू से मैं ने लिखा था जो कुछ दीवार-ए-ज़िंदाँ पर