है हुसूल-ए-आरज़ू का राज़ तर्क-ए-आरज़ू
मैं ने दुनिया छोड़ दी तो मिल गई दुनिया मुझे
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सुकूँ-पज़ीर जुनून-ए-शबाब हो न सका
बरहमन कहता था बरहम शैख़ बोल उठा अहद
इजाज़त दे कि अपनी दास्तान-ए-ग़म बयाँ कर लें
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहीं
नशात-ए-हुस्न हो जोश-ए-वफ़ा हो या ग़म-ए-इश्क़
ये मेरी तीरा-नसीबी ये सादगी ये फ़रेब
जरस है कारवान-ए-अहल-ए-आलम में फ़ुग़ाँ मेरी
मेरी रिफ़अत पर जो हैराँ है तो हैरानी नहीं
परेशाँ होने वालों को सुकूँ कुछ मिल भी जाता है
दुनिया है ख़्वाब हासिल-ए-दुनिया ख़याल है
दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में
क्या ढूँढने जाऊँ मैं किसी को