उम्र-ए-दराज़ माँग के लाई थी चार दिन
दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में
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कहानी मेरी रूदाद-ए-जहाँ मालूम होती है
ब-क़ैद-ए-वक़्त ये मुज़्दा सुना रहा है कोई
मिरी ख़ामोशियों पर दुनिया मुझ को तअन देती है
है हुसूल-ए-आरज़ू का राज़ तर्क-ए-आरज़ू
बड़ी दिलचस्पियों से सुब्ह-ए-शाम-ए-ज़िंदगी होगी
सुकूँ-पज़ीर जुनून-ए-शबाब हो न सका
चमक जुगनू की बर्क़-ए-बे-अमाँ मालूम होती है
दुनिया है ख़्वाब हासिल-ए-दुनिया ख़याल है
इदराक ख़ुद-आश्ना नहीं है
अब ऐ बे-दर्द क्या इस के लिए इरशाद होता है
क्या ढूँढने जाऊँ मैं किसी को
क्यूँ जाम-ए-शराब-ए-नाब माँगूँ