कुछ ग़ौर का जौहर नहीं ख़ुद-फ़हमी में हैराँ हैं
इस अस्र के फ़ाज़िल सब सतही हैं जूँ आईना
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(494) Peoples Rate This
ऐ नासेह चश्म-ए-तर से मत कर आँसू पाक रहने दे
गर मेरे लहू रोने का बारान बनेगा
जब तन न रहा मेरा हूँ वासिल-ए-जानाना
कर रहे हैं मुझ से तुझ-बिन दीदा-ए-नमनाक जंग
बहार आई जुनूँ लेगा हमारा इम्तिहाँ देखें
तिरी ज़ुल्फ़ की शब का बेदार मैं हूँ
उस को पहुँची ख़बर कि जीता हूँ
नयन में ख़ूँ भर आया दिल में ख़ार-ए-ग़म छुपा शायद
जिन दिनों हम उस शब-ए-हज़ के सियह-कारों में थे
जुनूँ-आवर शब-ए-महताब थी पी की तमन्ना में
ग़ुंचा-ए-दिल मिरा खा कर गुल-ए-ख़ंदाँ मेरा
वो क्या दिन थे जो क़ातिल-बिन दिल-ए-रंजूर रो देता