वो आईना है तो हैरत किसी जमाल की हो
जो संग है तो कहीं रहगुज़र में रक्खा जाए
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Habib Jalib
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(563) Peoples Rate This
ये वीरानी सी यूँही तो नहीं रहती है आँखों में
फिर इस से क़ब्ल कि बार-ए-दिगर बनाया जाए
मैं आ रहा था सितारों पे पाँव धरते हुए
अभी तो मंसब-ए-हस्ती से मैं हटा ही नहीं
अजब नहीं दर-ओ-दीवार जैसे हो जाएँ
अगर कुछ भी मिरे घर से दम-ए-रुख़्सत निकलता है
मिरी निगाह किसी ज़ाविए पे ठहरे भी
ये ख़याल था कभी ख़्वाब में तुझे देखते
ज़मीन इतनी नहीं है कि पाँव रख पाएँ
जमाल मुझ पे ये इक दिन में तो नहीं आया
दर-ओ-बस्त-ए-अनासिर पारा पारा होने वाला है