अजब नहीं दर-ओ-दीवार जैसे हो जाएँ
हम ऐसे लोग जो ख़ुद से कलाम करते हैं
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Gulzar
Wasi Shah
Habib Jalib
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Javed Akhtar
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अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोए
ऐसी तक़्सीम की सूरत निकल आई घर में
दर-ओ-बस्त-ए-अनासिर पारा पारा होने वाला है
बे-वज्ह न बदले थे मुसव्विर ने इरादे
मुझे ज़िंदगी से ख़िराज ही नहीं मिल रहा
जमाल मुझ पे ये इक दिन में तो नहीं आया
वो आईना है तो हैरत किसी जमाल की हो
हवा में आए तो लौ भी न साथ ली हम ने
ख़ुश-अर्ज़ानी हुई है इस क़दर बाज़ार-ए-हस्ती में
हवा का हुक्म भी अब के नज़र में रक्खा जाए
उठा उठा के तिरे नाज़ ऐ ग़म-ए-दुनिया
कोई कब दीवार बना है मेरे सफ़र में