कोई कब दीवार बना है मेरे सफ़र में
ख़ुद ही अपने रस्ते की दीवार रहा हूँ
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Gulzar
Anwar Masood
Habib Jalib
Rahat Indori
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(534) Peoples Rate This
ज़मीन इतनी नहीं है कि पाँव रख पाएँ
ये ख़याल था कभी ख़्वाब में तुझे देखते
ये वीरानी सी यूँही तो नहीं रहती है आँखों में
अब ये हंगामा-ए-दुनिया नहीं देखा जाता
उठा उठा के तिरे नाज़ ऐ ग़म-ए-दुनिया
अब आसमान भी कम पड़ रहे हैं उस के लिए
आज किस ख़्वाब की ताबीर नज़र आई है
मैं आ रहा था सितारों पे पाँव धरते हुए
सारी तरतीब-ए-ज़मानी मिरी देखी हुई है
अगर कुछ भी मिरे घर से दम-ए-रुख़्सत निकलता है
मुझे ज़िंदगी से ख़िराज ही नहीं मिल रहा
ब-नाम-ए-इश्क़ यही एक काम करते हैं