किनारा कर न ऐ दुनिया मिरी हस्त-ए-ज़बूनी से
कोई दिन में मिरा रौशन सितारा होने वाला है
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कोई कब दीवार बना है मेरे सफ़र में
वो ख़ुद गया है उस का असर तो नहीं गया
खोल देते हैं पलट आने पे दरवाज़ा-ए-दिल
रात रो रो के गुज़ारी है चराग़ों की तरह
ख़ुश-अर्ज़ानी हुई है इस क़दर बाज़ार-ए-हस्ती में
अब आसमान भी कम पड़ रहे हैं उस के लिए
उठा उठा के तिरे नाज़ ऐ ग़म-ए-दुनिया
पोशीदा किसी ज़ात में पहले भी कहीं था
मुझे ज़िंदगी से ख़िराज ही नहीं मिल रहा
ब-नाम-ए-इश्क़ यही एक काम करते हैं
मिरी निगाह किसी ज़ाविए पे ठहरे भी
अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोए