खोल देते हैं पलट आने पे दरवाज़ा-ए-दिल
आने वाले का इरादा नहीं देखा जाता
Mohsin Naqvi
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Habib Jalib
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Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Gulzar
Anwar Masood
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तुझ को इस तरह कहाँ छोड़ के जाना था हमें
ये ख़याल था कभी ख़्वाब में तुझे देखते
कोई कब दीवार बना है मेरे सफ़र में
अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोए
अब ये हंगामा-ए-दुनिया नहीं देखा जाता
सारी तरतीब-ए-ज़मानी मिरी देखी हुई है
ज़मीन इतनी नहीं है कि पाँव रख पाएँ
अगर कुछ भी मिरे घर से दम-ए-रुख़्सत निकलता है
वो ख़ुद गया है उस का असर तो नहीं गया
इस रात किसी और क़लम-रौ में कहीं था