ख़ुश-अर्ज़ानी हुई है इस क़दर बाज़ार-ए-हस्ती में
गिराँ जिस को समझता हूँ वो कम-क़ीमत निकलता है
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अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोए
अगर कुछ भी मिरे घर से दम-ए-रुख़्सत निकलता है
हवा में आए तो लौ भी न साथ ली हम ने
पोशीदा किसी ज़ात में पहले भी कहीं था
ये वीरानी सी यूँही तो नहीं रहती है आँखों में
ये ख़याल था कभी ख़्वाब में तुझे देखते
मैं आ रहा था सितारों पे पाँव धरते हुए
अब ये हंगामा-ए-दुनिया नहीं देखा जाता
आज किस ख़्वाब की ताबीर नज़र आई है
तिरे ख़याल की लौ ही सफ़र में काम आई
अभी फिर रहा हूँ मैं आप-अपनी तलाश में
तुझ को इस तरह कहाँ छोड़ के जाना था हमें