आंगन Poetry (page 10)

कहाँ गई एहसास की ख़ुशबू फ़ना हुए जज़्बात कहाँ

देवमणि पांडेय

इस जहाँ में प्यार महके ज़िंदगी बाक़ी रहे

देवमणि पांडेय

आईने में देख के चेहरा बे-शक मैं हैरान हुआ

देवमणि पांडेय

सलोनी शाम के आँगन में जब दो वक़्त मिलते हैं

दीपक क़मर

अब के बरस भी महका महका ख़्वाब दरीचा लगता है

बुशरा ज़ैदी

तुझ जैसा इक आँचल चाहूँ अपने जैसा दामन ढूँडूँ

बिमल कृष्ण अश्क

सवाब है या किसी जनम का हिसाब कोई चुका रहा हूँ

भारत भूषण पन्त

तंज़ की तेग़ मुझी पर सभी खींचे होंगे

बेकल उत्साही

ये जो चेहरों पे लिए गर्द-ए-अलम आते हैं

बेदिल हैदरी

लोगो हम छान चुके जा के समुंदर सारे

बशीर फ़ारूक़ी

कमरे वीराँ आँगन ख़ाली फिर ये कैसी आवाज़ें

बशीर बद्र

पिछली रात की नर्म चाँदनी शबनम की ख़ुनकी से रचा है

बशीर बद्र

वक़्त के कटहरे में

बशर नवाज़

बहुत था ख़ौफ़ जिस का फिर वही क़िस्सा निकल आया

बशर नवाज़

शायद

बलराज कोमल

खोया खोया उदास सा होगा

बलराज कोमल

गौरय्यों ने जश्न मनाया मेरे आँगन बारिश का

बद्र-ए-आलम ख़लिश

आसमाँ पर काले बादल छा गए

बद्र-ए-आलम ख़लिश

बाग़-ए-दिल में कोई ग़ुंचा न खिला तेरे बा'द

बदनाम नज़र

फैलते हुए शहरो अपनी वहशतें रोको

अज़रा नक़वी

मो'तबर से रिश्तों का साएबान रहने दो

अज़रा नक़वी

कैसे कैसे स्वाँग रचाए हम ने दुनिया-दारी में

अज़रा नक़वी

दिल सोया हुआ था मुद्दत से ये कैसी बशारत जागी है

अज़्म बहज़ाद

तू आया तो द्वार भिड़े थे दीप बुझा था आँगन का

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

कोई ऐसी बात है जिस के डर से बाहर रहते हैं

अज़हर नक़वी

दिल कुछ देर मचलता है फिर यादों में यूँ खो जाता है

अज़हर नक़वी

फ़न उड़ानों का जब ईजाद किया था मैं ने

अज़हर इनायती

अटूट अंग

अज़हर गौरी

ख़ुद से अब मुझ को जुदा यूँ ही मिरी जाँ रखना

अज़ीज़ परीहारी

पेड़ आँगन के तिरे जब बारवर हो जाएँगे

आज़ाद गुरदासपुरी

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