आराम Poetry (page 3)

रोज़ ख़ूँ होते हैं दो-चार तिरे कूचे में

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

साँसों में बसे हो तुम आँखों में छुपा लूँगा

शाज़ तमकनत

शैख़ ओ बरहमन दोनों हैं बर-हक़ दोनों का हर काम मुनासिब

शौक़ बहराइची

रोता हुआ बकरा

शारिक़ कैफ़ी

एक शय थी कि जो पैकर में नहीं है अपने

शरीफ़ अहमद शरीफ़

रूह को अपनी तह-ए-दाम नहीं कर सकता

शमीम रविश

कई रातों से बस इक शोर सा कुछ सर में रहता है

शमीम हनफ़ी

तेरे नालों से कोई बदनाम होता जाएगा

शाकिर कलकत्तवी

कहाँ है आ जा

शकील बदायुनी

सुब्ह का अफ़्साना कह कर शाम से

शकील बदायुनी

इश्क़ उस का आन कर यक-बारगी सब ले गया

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जान आँखों में रही जी से गुज़रने न दिया

शैख़ अब्दुल लतीफ़ तपिश

मंज़िल है कठिन दिल बहुत आराम-तलब है

शहज़ाद अहमद

कितनी बे-नूर थी दिन भर नज़र-ए-परवाना

शहज़ाद अहमद

जल भी चुके परवाने हो भी चुकी रुस्वाई

शहज़ाद अहमद

इस भरे शहर में आराम मैं कैसे पाऊँ

शहज़ाद अहमद

इबलीस भी रख लेते हैं जब नाम फ़रिश्ते

शहज़ाद अहमद

हिज्र की रात मिरी जाँ पे बनी हो जैसे

शहज़ाद अहमद

मैं ज़हर रही हर शाम रही

शाहिदा तबस्सुम

कोई सर्द हवा लब-ए-बाम चली

शाहिदा हसन

कूचा-ए-संग-ए-मलामत के सब आसार के साथ

शाहिद कमाल

नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ उस की ख़ातिर रहन-ए-जाम करो

शाहिद इश्क़ी

हम दोनों ने नाम लिखा था साहिल पर

शाहिद फ़रीद

यूँ तो इस बज़्म में अपने भी हैं बेगाने भी

शाहिद अख़्तर

ऐ निगार-ए-ग़म-ओ-आलाम तिरी उम्र दराज़

शाहिद अहमद शोएब

ऐ निगार-ए-ग़म-ओ-आलाम तिरी उम्र दराज़

शाहिद अहमद शोएब

ज़िंदगी है मुख़्तसर आहिस्ता चल

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

शब जो रुख़-ए-पुर-ख़ाल से वो बुर्के को उतारे सोते हैं

शाह नसीर

ख़ाल-ए-रुख़ उस ने दिखाया न दोबारा अपना

शाह नसीर

जो ऐन वस्ल में आराम से नहीं वाक़िफ़

शाह नसीर

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