पुर आशोब Poetry (page 2)

वस्ल के मरहले से हिज्र की मंज़िल की तरफ़

राहुल झा

रस्म-ए-उल्फ़त से है मक़्सूद-ए-वफ़ा हो कि न हो

इरफ़ान अहमद मीर

अगरचे मुझ को बे-तौक़-ओ-रसन-बस्ता नहीं छोड़ा

इक़बाल कौसर

बुझ गई दिल की किरन आईना-ए-जाँ टूटा

इक़बाल हैदर

बन-बास

इफ़्तिख़ार आरिफ़

फ़ज़ा में वहशत-ए-संग-ओ-सिनाँ के होते हुए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मैं अक्सर सोचती हूँ ज़िंदगी को कौन लिक्खेगा

हिजाब अब्बासी

गर इश्क़ से वाक़िफ़ मरे महबूब न होता

हसरत अज़ीमाबादी

सब उम्मीदें मिरे आशोब-ए-तमन्ना तक थीं

हसन आबिदी

पल रहे हैं कितने अंदेशे दिलों के दरमियाँ

हसन आबिदी

दिल की दहलीज़ पे जब शाम का साया उतरा

हसन आबिदी

ख़ुद अपने आप से हम बे-ख़बर से गुज़रे हैं

हमीद नागपुरी

लू हो सबा हो या पुर्वाई सब के साथ चलो

हबीब फख़री

कुछ भी दुश्वार नहीं अज़्म-ए-जवाँ के आगे

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

अब्र-पारा हूँ कोई दम में चला जाऊँगा

ज्ञान चंद जैन

रंग-ओ-बू का शौक़ आशोब-ए-हवा में ले गया

गुलज़ार बुख़ारी

कितनी सदियाँ ना-रसी की इंतिहा में खो गईं

गुलज़ार बुख़ारी

अकेला दिन है कोई और न तन्हा रात होती है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

थक थक गए हैं आशिक़ दरमांदा-ए-फ़ुग़ाँ हो

ग़ुलाम मौला क़लक़

हम तो याँ मरते हैं वाँ उस को ख़बर कुछ भी नहीं

ग़ुलाम मौला क़लक़

बे-गाना-अदाई है सितम जौर-ओ-सितम में

ग़ुलाम मौला क़लक़

यक-ज़र्रा-ए-ज़मीं नहीं बे-कार बाग़ का

ग़ालिब

दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए

ग़ालिब

ये क्या बताएँ कि किस रहगुज़र की गर्द हुए

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

न दामनों में यहाँ ख़ाक-ए-रहगुज़र बाँधो

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

दोस्तो तुम ने भी देखी है वो सूरत वो शबीह

दिलकश सागरी

शहर से क्या गई जानिब-ए-दश्त-ए-ज़र ज़िंदगी फ़ाख़्ता

दानियाल तरीर

ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया

दाग़ देहलवी

रक़्क़ासा-ए-औहाम

बेबाक भोजपुरी

काफ़िर तुझे अल्लाह ने सूरत तो परी दी

ज़फ़र

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