पुर आशोब Poetry (page 3)

जो बात शर्त-ए-विसाल ठहरी वही है अब वज्ह-ए-बद-गुमानी

अज़्म बहज़ाद

बनी हैं शहर-आशोब-ए-तमन्ना

अज़ीज़ लखनवी

फ़ुग़ाँ से तर्क-ए-फ़ुग़ाँ तक हज़ार तिश्ना-लबी है

अज़ीम मुर्तज़ा

यक लम्हा सही उम्र का अरमान ही रह जाए

अता शाद

सरमाया-दारी

असरार-उल-हक़ मजाज़

बस इस तक़्सीर पर अपने मुक़द्दर में है मर जाना

असरार-उल-हक़ मजाज़

सफ़र से पहले सराबों का सिलसिला रख आए

असलम महमूद

रक़्स-ए-मस्ती देखते जोश-ए-तमन्ना देखते

असग़र गोंडवी

मस्ती में फ़रोग़-ए-रुख़-ए-जानाँ नहीं देखा

असग़र गोंडवी

वक़्त इक दरिया है दरिया सब बहा ले जाएगा

असअ'द बदायुनी

ज़मीं से ता-ब-फ़लक कोई फ़ासला भी नहीं

आरिफ़ अब्दुल मतीन

मैं जिस को राह दिखाऊँ वही हटाए मुझे

आरिफ़ अब्दुल मतीन

हुआ करे अगर उस को कोई गिला होगा

अनवर अंजुम

हुआ करे अगर उस को कोई गिला होगा

अनवर अंजुम

आवाज़ के पत्थर

अमजद इस्लाम अमजद

कब से हम लोग इस भँवर में हैं

अमजद इस्लाम अमजद

क्यूँ ख़राबात में लाफ़-ए-हमा-दानी वाइ'ज़

अमीरुल्लाह तस्लीम

समा सकता नहीं पहना-ए-फ़ितरत में मिरा सौदा

अल्लामा इक़बाल

न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए

अल्लामा इक़बाल

सफ़र में राह के आशोब से न डर जाना

आलमताब तिश्ना

सफ़र में राह के आशोब से न डर जाना

आलमताब तिश्ना

पहले तो सोच के दोज़ख़ में जलाता है मुझे

अख़्तर होशियारपुरी

जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी

अहमद फ़राज़

इश्क़ नश्शा है न जादू जो उतर भी जाए

अहमद फ़राज़

भेद पाएँ तो रह-ए-यार में गुम हो जाएँ

अहमद फ़राज़

हम ने कुछ पँख जो दालान में रख छोड़े हैं

अफ़ज़ाल नवेद

क्या रात के आशोब में वो ख़ुद से लड़ा था

आफ़ताब इक़बाल शमीम

नस्लें जो अँधेरे के महाज़ों पे लड़ी हैं

आफ़ताब इक़बाल शमीम

तौफ़ीक़ से कब कोई सरोकार चले है

अदा जाफ़री

भूली-बिसरी बातों से क्या तश्कील-ए-रूदाद करें

अब्दुल हमीद अदम

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