आसमाँ Poetry (page 19)

चराग़ की ओट में रुका है जो इक हयूला सा यासमीं का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अपने अपने लहू की उदासी लिए सारी गलियों से बच्चे पलट आएँगे

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अगर ये रंगीनी-ए-जहाँ का वजूद है अक्स-ए-आसमाँ से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

बिजली की ज़द में एक मिरा आशियाँ नहीं

ग़नी एजाज़

ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है

ग़ालिब

रात दिन गर्दिश में हैं सात आसमाँ

ग़ालिब

हम कहाँ के दाना थे किस हुनर में यकता थे

ग़ालिब

ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना

ग़ालिब

शब कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से ज़हरा-ए-अब्र आब था

ग़ालिब

नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त जाँ के लिए

ग़ालिब

किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो

ग़ालिब

जौर से बाज़ आए पर बाज़ आएँ क्या

ग़ालिब

एक जा हर्फ़-ए-वफ़ा लिखा था सो भी मिट गया

ग़ालिब

ज़र्रे की तरह ख़ाक में पामाल हो गए

जोर्ज पेश शोर

पैक-ए-ख़याल भी है अजब क्या जहाँ-नुमा

जोर्ज पेश शोर

तुझे किस तरह छुड़ाऊँ ख़लिश-ए-ग़म-ए-निहाँ से

फ़िज़ा जालंधरी

शाम-ए-अयादत

फ़िराक़ गोरखपुरी

परछाइयाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुगनू

फ़िराक़ गोरखपुरी

हिण्डोला

फ़िराक़ गोरखपुरी

आधी रात

फ़िराक़ गोरखपुरी

जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

अब दौर-ए-आसमाँ है न दौर-ए-हयात है

फ़िराक़ गोरखपुरी

तिरी जुस्तुजू में देखा मैं कहाँ कहाँ से गुज़रा

फ़िगार मुरादाबादी

तुम्हीं इक नहीं जाँ-सेताँ और भी हैं

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

मैं ख़ुद हूँ नक़्द मगर सौ उधार सर पर है

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

लहू ही कितना है जो चश्म-ए-तर से निकलेगा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

जुरअत-ए-इज़हार से रोकेगी क्या

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

अब आ गए हो तो रफ़्तगाँ को भी याद रखना

फ़य्याज़ तहसीन

उस की गली में ज़र्फ़ से बढ़ कर मिला मुझे

फ़व्वाद अहमद

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