इद्दो Poetry (page 3)

कहना हो जो भी साफ़ कहो बे-झिजक कहो

सहर महमूद

अमानत मोहतसिब के घर शराब-ए-अर्ग़वाँ रख दी

साइल देहलवी

हँसी की बात कि उस ने वहाँ बुला के मुझे

सादुल्लाह शाह

ज़रूर पाँव में अपने हिना वो मल के चले

रियाज़ ख़ैराबादी

वो हों मुट्ठी में उन की दिल हो हम हों

रियाज़ ख़ैराबादी

मुझ को न दिल पसंद न दिल की ये ख़ू पसंद

रियाज़ ख़ैराबादी

दर खुला सुब्ह को पौ फटते ही मय-ख़ाने का

रियाज़ ख़ैराबादी

ख़ुद-निगर थे और महव-ए-दीद-ए-हुस्न-ए-यार थे

रज़ी मुजतबा

वो तमाम रंग अना के थे वो उमंग सारी लहू से थी

राज़ी अख्तर शौक़

दिन का मलाल शाम की वहशत कहाँ से लाएँ

राज़ी अख्तर शौक़

इन आँखों में बसा कोई ज़ोहरा-जबीं है अब

रऊफ़ यासीन जलाली

अब इस से पहले कि तन मन लहू लहू हो जाए

रऊफ़ ख़ैर

किस को लहद और मर्ग का डर हो

रशीद रामपुरी

वो दोस्त था तो उसी को अदू भी होना था

इक़बाल साजिद

है जिस में क़ुफ़्ल-ए-ख़ाना-ए-ख़ुम्मार तोड़िए

इंशा अल्लाह ख़ान

कभी तो चश्म-ए-फ़लक में हया दिखाई दे

इनआम आज़मी

तेरी जानिब से मुझ पे क्या न हुआ

इम्दाद इमाम असर

सूली चढ़े जो यार के क़द पर फ़िदा न हो

इम्दाद इमाम असर

क़ैद-ए-तन से रूह है नाशाद क्या

इम्दाद इमाम असर

महफ़िल में उस पे रात जो तू मेहरबाँ न था

इम्दाद इमाम असर

जफ़ाएँ होती हैं घुटता है दम ऐसा भी होता है

इम्दाद इमाम असर

सर्व में रंग है कुछ कुछ तिरी ज़ेबाई का

इमदाद अली बहर

रख़्त-ए-गुरेज़ गाम से आगे की बात है

इलियास बाबर आवान

मैं जिस को अपनी गवाही में ले के आया हूँ

इफ़्तिख़ार आरिफ़

जुनूँ का रंग भी हो शोला-ए-नुमू का भी हो

इफ़्तिख़ार आरिफ़

तुम भी निगाह में हो अदू भी नज़र में है

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

साक़िया ये जो तुझ को घेरे हैं

हीरा लाल फ़लक देहलवी

उस का हाल-ए-कमर खुला हमदम

हातिम अली मेहर

न समझे दिल फ़रेब-ए-आरज़ू को

हसरत मोहानी

हाइल थी बीच में जो रज़ाई तमाम शब

हसरत मोहानी

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