इद्दो Poetry (page 7)

हर एक रुख़ से मुझे लुत्फ़-ए-जुस्तुजू आए

अशरफ़ रफ़ी

अपने घर में मिरी तस्वीर सजाने वाले

असग़र राही

ग़ज़ल में जान पड़ी गुफ़्तुगू में फूल खिले

अरशद अब्दुल हमीद

ब-ज़ाहिर ये वही मिलने बिछड़ने की हिकायत है

अरमान नज्मी

न मैं समझा न आप आए कहीं से

अनवर देहलवी

देखा जो मर्ग तो मरना ज़ियाँ न था

अनवर देहलवी

अश्क बेताब व निगह बे-बाक व चश्म-ए-तर ख़राब

अनवर देहलवी

अब अपना हाल हम उन्हें तहरीर कर चुके

अनवर देहलवी

आँखें दिखाईं ग़ैर को मेरी ख़ता के साथ

अनवर देहलवी

नाम तेरा भी रहेगा न सितमगर बाक़ी

अनीस अंसारी

भर नहीं पाया अभी तक ज़ख़्म-ए-कारी हाए हाए

अनीस अंसारी

सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता

अमीर मीनाई

फूलों में अगर है बू तुम्हारी

अमीर मीनाई

कुछ ख़ार ही नहीं मिरे दामन के यार हैं

अमीर मीनाई

आग़ोश में जो जल्वागर इक नाज़नीं हुआ

अमानत लखनवी

हक़ वफ़ा के जो हम जताने लगे

अल्ताफ़ हुसैन हाली

जब पियारा गिला सुनाता है

अलीमुल्लाह

कुछ फ़ासला नहीं है अदू और शिकस्त में

अकरम नक़्क़ाश

आँख दरिया जिगर लहू करना

अख़्तर ज़ियाई

क़िस्मत में दर्द है तो दवा ही न लाऊँगा

अख़तर शाहजहाँपुरी

नदीम बाग़ में जोश-ए-नुमू की बात न कर

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

तमाम आलम-ए-इम्काँ मिरे गुमान में है

अकबर हमीदी

बिखरा हूँ जब मैं ख़ुद यहाँ कोई मुझे गिराए क्यूँ

अजय सहाब

मेरा शिकवा तिरी महफ़िल में अदू करते हैं

ऐश देहलवी

क्यूँ चुप हैं वो बे-बात समझ में नहीं आता

अहसन मारहरवी

हमारी हम-नफ़सी को भी क्या दवाम हुआ

अहमद जावेद

मुहासरा

अहमद फ़राज़

न हरीफ़-ए-जाँ न शरीक-ए-ग़म शब-ए-इंतिज़ार कोई तो हो

अहमद फ़राज़

मंज़िलें एक सी आवारगीयाँ एक सी हैं

अहमद फ़राज़

किसी जानिब से भी परचम न लहू का निकला

अहमद फ़राज़

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